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पंचमी कल्प का आंरभ, नागपंचमी की कथा,पंचमी  व्रत का विधान और फल,नागपंचमी का मंत्र 


नाग पंचमी (25  जुलाई  2020 ) कल्प वर्णन:-

सुमन्तु मुनि बोले - राजन् ! अब मैं पञ्चमी - कल्प का वर्णन करता हूँ । पञ्चमी तिथि नागों को अत्यन्त प्रिय है और उन्हें आनन्द देने वाली है । इस दिन नागलोक में विशिष्ट उत्सव होता है । पञ्चमी तिथिको जो व्यक्ति नागो को दूध से नान कराता है , उसके कुल मे वासुकि , तक्षक , कालिय , मणिभद्र , ऐरावत , धृतराष्ट्र , ककोंटक तथा धनञ्जय - ये सभी बड़े - बड़े नाग अभय दान देते हैं - उसके कुल में सर्प का भय नहीं रहता । एक बार माता के शाप से नाग लोग जलने लग गये थे । इसीलिये उस दाह की व्यथाको दूर करनेके लिये पचमी को गाय के दूध से नागों को आज भी लोग स्रान कराते हैं , इससे सर्प - भय नहीं रहता ।

नाग माता ने नागो को क्यों श्राप दिया:-

राजाने पूछा - महाराज ! नाग माता ने नागोंको क्यों शाप दिया था और फिर वे कैसे बच गये ? इसका आप विस्तारपूर्वक वर्णन करें ।

नागो की श्राप की कहानी:-

सुमन्तु मुनि ने कहा - एक बार राक्षसों और देवताओ ने मिलकर समुद्रका मन्थन किया । उस समय समुद्रसे अतिशय श्वेत उश्रवा नामका एक अव निकला , उसे देखकर नाग माता कढू ने अपनी सपली ( सौत ) विनता से कहा कि देखो , यह अश्व श्वेतवर्णका है , परंतु इसके बाल काले दीख पड़ते हैं ।
तब विनता ने कहा कि न तो यह अश्व सर्वश्वेत है , न काला है और न लाल ।यह सुनकर कढूने कहा - ' मेरे साथ शर्त करो कि यदि मैं इस अश्व के बालों को कृष्णवर्ण का दिखा दू तो तुम मेरी दासी हो जाओगी और यदि नहीं दिखा सकी तो मैं तुम्हारी दासी हो जाऊँगी । विनता ने यह शर्त स्वीकार कर ली ।

दोनों क्रोध करती हुई अपने - अपने स्थान को चली गयीं । कढू ने अपने पुत्र नागों को बुलाकर सब वृत्तान्त उन्हें सुना दिया और कहा कि ' पुत्रो ! तुम अश्व के बाल के समान सूक्ष्म होकर उचैःश्रवा के शरीरमें लिपट जाओ , जिससे यह कृष्णवर्ण का दिखायी देने लगे । ताकि मैं अपनी सौत विनता को जीतकर उसे अपनी दासी बना सकूँ ।माता के इस वचन को सुनकर नागों ने कहा - ' माँ ! यह छल तो हम लोग नहीं करेंगे , चाहे तुम्हारी जीत हो या हार । छल से जीतना बहुत बड़ा अधर्म है । '
पुत्रों का यह वचन सुनकर कटू ने क्रुद्ध होकर कहा - तुम लोग मेरी आज्ञा नहीं मानते हो . इसलिये मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि ' पाण्डवो के वंश में उत्पत्र राजा जनमेजय जय सर्प - सत्र करेंगे , तब उस यज्ञ में तुम सभी अग्रिम जल जाओगे । ' इतना कहकर कटू चुप हो गयी । नागगण माता का शाप सुनकर बहुत घबराये और वासुकि को साथ में लेकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे तथा ब्रह्माजी को अपना सारा वृत्तान्त सुनाया ।

ब्रह्मा जी ने नागों से क्या कहा:-

इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि वासुके ! चिन्ता मत करो । मेरी बात सुनो - यायावर - वंश में बहुत बड़ा तपस्वी जरत्कारु नामका ब्राह्मण उत्पत्र होगा । उसके साथ तुम अपनी जरत्कारु नामवाली बहिन का विवाह कर देना और वह जो भी कहे , उसका वचन स्वीकार करना । उसे आस्तीक नामका विख्यात पुत्र उत्पन्न होगा , वह जनमेजय के सर्पयज्ञ को रोकेगा और तुम लोगों की रक्षा करेगा । ब्रह्माजी के इस वचन को सुनकर नागराज वासुकि आदि अतिशय प्रसन्न हो , उन्हें प्रणाम कर अपने लोक मे आ गये ।

सुमन्तु मुनि ने इस कथा को सुनाकर कहा - राजन् ! यह यज्ञ तुम्हारे पिता राजा जनमेजय ने किया था । यही बात श्रीकृष्णभगवान ने भी युधिष्ठिरसे कही थी कि ' राजन् ! आज से सौ वर्ष के बाद सर्पयज्ञ होगा , जिसमें बड़े - बड़े विषधर और दुष्ट नाग नष्ट हो जायेंगे । करोड़ों नाग जब अग्रि मे दग्ध होने लगेंगे , तव आस्तीक नामक ब्राह्मण सर्पयज्ञ रोककर नागोंकी रक्षा करेगा । ब्रह्माजी ने  पंचमी के दिन वर दिया था और आस्तीक मुनि ने पंचमी को ही नागों की रक्षा की थी , अतः पञ्चमी तिथि नागों को पञ्चमी के दिन नागों को पूजाकर यह प्रार्थना करनी चाहिये कि जो नाग पृथ्वीमें , आकाशम , स्वर्गमे , सूर्यको किरणोमें , सरोवरोमे , वापी , कृप , तालाब आदि में रहते हैं , वे सब हमपर प्रसन्न हो , हम उनको बार - बार नमस्कार करते हैं । बहुत प्रिय है ।

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सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले ॥
ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः ।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः ।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नमः ।

इस प्रकार नागों को विसर्जित कर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये और स्वयं अपने कुटुम्बियों के साथ भोजन करना चाहिये । प्रथम मीठा भोजन करना चाहिये , अनन्तर अपनी अभिरुचि के अनुसार भोजन करे । इस प्रकार नियमानुसार जो पंचमी को नागों का पूजन करता है , वह श्रेष्ठ विमान में बैठकर नाग लोक को जाता है और बाद में द्वापरयुग में बहुत पराक्रमी , रोगरहित तथा प्रतापी राजा होता है । इसलिये घी , खीर तथा गुणुलसे इन नागोंकी पूजा करनी चाहिये ।

जिसके माता - पिता , भाई , पुत्र आदि सर्प के काटने से मरे हों , उनके उद्धार के लिये कौन - सा व्रत , दान अथवा उपवास करना चाहिये :-

राजा ने पूछा - महाराज ! क्रुद्ध सर्प के काटने से मरनेवाला व्यक्ति किस गति को प्राप्त होता है और जिसके माता - पिता , भाई , पुत्र आदि सर्प के काटने से मरे हों , उनके उद्धार के लिये कौन - सा व्रत , दान अथवा उपवास करना चाहिये , यह आप बतायें ।
सुमन्तु मुनिने कहा - राजन् ! सर्प के काटने से जो मरता है.वह अधोगति को प्राप्त होता है तथा निर्विष सर्प होता है और जिसके माता - पिता आदि सर्प के काटने से मरते है , वह उनकी सदति के लिये भाद्रपद के शुक्ल पक्ष को पञ्चमी तिथिको उपवास ' ।

यह तिथि महापुण्या क्यों है और किस प्रकार पूजा करे :-

यह तिथि महापुण्या कही गयी है । इस प्रकार बारह महीने तक चतुर्थी तिथि के दिन एक बार भोजन करना चाहिये और पंचमी को व्रतकर नागो की पूजा करनी चाहिये ।
पृथ्वी पर नागों का चित्र अङ्कित कर अथवा सोना , काष्ठ या मिट्टी का नाग बनाकर पंचमी के दिन करवीर , कमल , चमेली आदि पुष्प , गन्ध , धूप और विविध नैवेद्योसे उनको पूजा कर घौ , खौर और लङ्ग उत्तम पाँच ब्राह्मणोको खिलाये । अनन्त , वासुकि , शंख , पघ, कंबल , कोटक , कर नागों की अश्वतर , धृतराष्ट्र , शंखपाल , कालिय , तक्षक और पिंगल - इन बारह नागोंकी बारह महीनोंमें क्रमशः पूजा करे ।
इस प्रकार वर्षपर्यन्त व्रत एवं पूजन कर व्रत की पारणा करनी चाहिये । बहुत से ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये । विद्वान् ब्राह्मण को सोने का नाग बनाकर उसे देना चाहिये । यह उद्यापन की विधि है ।
राजन् ! आपके पिता जनमेजय ने भी अपने पिता परीक्षित के उद्धार के लिये यह व्रत किया था और सोने का बहुत भारी नाग तथा अनेक गौएँ ब्राह्मणों को दी थी ।
ऐसा करने पर वे पितृ - ऋणसे मुक्त हुए थे और परीक्षित ने भी उत्तम लोक को प्राप्त किया था । आप भी इसी प्रकार सोने का नाग बनाकर उनकी पूजा कर उन्हें ब्राह्मणको दान करें , इससे आप भी पितृ - ऋण से मुक्त हो जायेंगे । राजन् ! जो कोई भी इस नागपशमी - व्रत को करेगा , साँप से डांसे जाने पर भी वह शुभ लोक को प्राप्त होगा और जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेगा , उसके कुल में कभी भी साँप का भय नहीं होगा । इस पञ्चमी - व्रत करने से उत्तम लोक की प्राप्ति होती है।



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