।।ॐ नमः शिवाय।।
शिव जी द्वारा कहीं गई 5 महत्वपूर्ण बातें
शिव संहिता (शिव संहिता, जिसका अर्थ है "शिव का संकलन") एक अज्ञात लेखक द्वारा लिखित योग पर एक संस्कृत पाठ है। पाठ को हिंडुगोड शिव ने अपनी पत्नी पार्वती को संबोधित किया है। पाठ में पाँच अध्याय शामिल हैं, पहले अध्याय में एक ग्रंथ है जिसमें दक्षिण भारत के श्री विद्या स्कूल के प्रभावों के साथ नंद वेदांत (अद्वैत वेदांत) के दर्शन का वर्णन है। शेष अध्याय में योग, गुरु के महत्व पर चर्चा की गई है। (शिक्षक) एक छात्र को, योग और तंत्र के साथ विभिन्न आसन, मुद्राएं और सिद्धियां (शक्तियां) प्राप्त होती हैं।
शिव संहिता हठ योग पर तीन प्रमुख जीवित शास्त्रीय ग्रंथों में से एक है, अन्य दो घेरंडा संहिता और हठ योग प्रदीपिका हैं। इसे हठ योग पर सबसे व्यापक ग्रंथ माना जाता है, जो यह सलाह देता है कि सभी घरवाले योग का अभ्यास करें और लाभ उठाएं। पाठ के एक दर्जन से अधिक प्रकार की पांडुलिपियाँ ज्ञात हैं, और पाठ का एक महत्वपूर्ण संस्करण 1999 में कैवल्य धाम योग अनुसंधान संस्थान द्वारा प्रकाशित किया गया था।
शिव द्वारा कहीं गई पांच महत्वपूर्ण बातें Mysteriousuniverseinhindi.blogspot.com |
शिव संहिता कहीं गई है कुछ महत्वूर्ण बातें आइये जानते है और यह ज्ञान हमारी जिंदगी में किस तरह काम आ सकती है:-
शिव संहिता में 5 महत्वपूर्ण बातें:-
1. ज्ञान से भिन्न कुछ नहीं है:-
एकंज्ञानं नित्यमाद्यन्तशून्यं ना न्यत् किञ्चिद्वर्त्तते वस्तु सत्यम्॥
यद्भे दोस्मि निन्द्रियोपाधिना वै ज्ञानस्यायं भासते नान्यथैव ॥
अर्थ:-केवल एक ज्ञान नित्य आदि अन्तरहित है ज्ञानसे अलग अन्य कोई वस्तु सत्य संसारमें वर्तमान नहीं है केवल इन्द्रियोपाधिद्वारा संसार जो भिन्न भिन्न बोध होताहै सो यह ज्ञानमात्रही प्रकाश होता है और कुछ नहीं है अर्थात् ज्ञानसे भिन्न कुछ नहीं है!
2. अथ भक्तानुरक्तोऽहं वक्ष्ये योगानु शासनम् ॥
ईश्वरः सर्वभूतानामात्ममुक्ति प्रदायकः ॥
त्यक्त्वा विवादशीलानां मतं दुर्ज्ञानहेतुकम् ।।
आत्मज्ञानाय भूता नामनन्यगतिचेतसाम् ॥
अर्थ- सर्व प्राणिमात्रके ईश्वर आत्ममुक्तिप्रदायक भक्तवत्सल जिन मनुष्योंको सिवाय आत्मज्ञानके : अन्य गति नहीं है उनकें हेतु कृपापूर्वक योगोपदश करतेहैं विवादशील लोगोंका मत दुर्ज्ञानका हेतु है यह त्याने के योग्य है ॥
3. सत्यं केचित्प्रशंसन्ति तपः शौचं तथापरे ॥
क्षमा केचित्प्रशंसंति तथैवश ममार्जवम् ॥
केचिदानं प्रशंसन्ति पि तृकर्म तथापरे ॥
केचित्कर्म प्रशंसन्ति केचिद्वैराग्यमुत्तमम् ।।
अर्थ:- कोई सत्यकी प्रशंसा करते हैं , कोई तपस्या की , कोई शौचाचार की , कोई क्षमा की प्रशंसा , कोई समता की , कोई सरलता की , कोई दान की प्रशंसा , कोई पितकर्म की , कोई मकाम उपासना की , कोई पुरुष वैराग्य को उत्तम कहेंगे।
4. केचिट्टहस्थकर्माणि प्रशसन्ति विच क्षणाः ॥
अग्निहोत्रादिकं कर्म तथाकेंचि त्परं विदुः ॥
मन्त्रयोगं प्रशंसन्ति केचित्तीर्थानुसेवनम् ॥
एवं बहूनुपायां स्तु प्रवदन्ति विमुक्तये ॥
अर्थ- कोई पुरुष गृहस्थकर्मकी प्रशंसा करते हैं , कोई बुद्धिमान पुरुप अग्निहोत्रादिक कर्मकी प्रशंसा करतो कोई मंत्रादिक कोई तीर्थसेवन करना मुख्य समझते हैं इसी प्रकार मनुष्य बहुतसे उपाय मुक्तिके हेतु अपने मतिके अनुसार करते हैं ॥
5. एवं व्यवसितालोके कृत्याकृत्यवि दो जनाः ॥
व्यामोहमेव गच्छंति विमु क्ताः पापकर्मभिः ।।
एतन्मतावलम्बी यो लब्ध्वा दुरितपुण्यके ॥
भ्रमतीत्यव शः सोऽत्र जन्ममृत्युपरम्पराम् ॥
अर्थ-- इसीतरह विधिनिषेध कर्मके जाननेवाले लोग पापकर्मसे रहित होके मोहमेंही पड़तेहैं और जो मनुष्य पुण्यपापका अनुष्ठान पहिले जो मत कहा है उसके आसरे होके करते हैं उसका फल यह होता है कि , मनुष्य वारंवार संसारमें जनमता और मरता है अर्थात् शुभाशुभ कर्म करनेसे कदापि मोक्ष नहीं होता परन्तु शुभकर्म करनेसे केवल चित्तकी शुद्धि होतीहै ॥
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