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निर्जला एकादशी संयम का अभ्यास,एकादशी निर्जला व्रत,व्रत विधि,एकादशी व्रत का महत्व


ज्येष्ठ मास की भीषण गर्मी में शुक्ल पक्ष एकादशी को निर्जला व्रत रखने का विधान है । यह कठिन व्रत व्यक्ति को संयम की सीख देता है ।

गंगा दशहरा - 1 जून 
निर्जला एकादशी  - 2 जून
पूर्णिमा - 5 जून
आषाढ़ मास आरंभ - 6 जून
योगिनी एकादशी - 17 जून 
अमावस्या - 21 जून

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एकादशी निर्जला व्रत का महत्व:-

हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों में समस्त प्राणियों के आत्मोद्धार के लिए एकादशी को सर्वश्रेष्ठ व्रत घोषित किया गया है । हिंदू पंचांग के अनुसार संवत्सर के बारह मासों के दोनों पक्षों की एकादशी तिथियों को मिलाने से एक साल में 24 और अधिकमास में 26 एकादशी व्रत पड़ते हैं , किंतु इन सबका संपूर्ण फल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत करने मात्र से ही प्राप्त हो जाता है । 
ऋषि - मुनियों का मानना रहा है कि जो व्यक्ति पूरे वर्ष की सभी एकादशियों का व्रत करने में असमर्थ हो , वह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जल उपवास करके श्रीहरि को प्रसन्न कर सकता है । पुराणों और महाभारत में इस कथा का उल्लेख मिलता है कि द्रौपदी सहित सभी पांडव एकादशी का व्रत रखते थे , लेकिन भीमसेन बेहद भोजन- | प्रिय थे । इसलिए एकादशी में उपवास का नियम उनके लिए अत्यंत दुष्कर था । इस समस्या से व्यथित होकर उन्होंने महर्षि वेदव्यास जी से समाधान पूछा ।
उनकी सारी बातें सुनकर व्यासजी ने उन्हें ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन निर्जल - निराहार व्रत रखने का निर्देश देते हुए कहा कि इस व्रत के प्रभाव से अन्य कष्ट तो दूर होंगे ही , साथ ही वर्ष भर की सारी एकादशियों का पुण्य फल भी प्राप्त हो जाएगा । महर्षि व्यास के निर्देशानुसार भीम ने आजीवन इस व्रत का पालन किया । इसीलिए इस व्रत को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है । इस व्रत के देवता संपूर्ण जगत के पालक भगवान विष्णु हैं । उनके प्रसन्न हो जाने पर भक्त के लिए भोग और मोक्ष दोनों सुलभ हो जाते हैं । 
कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि यह वैष्णवों का व्रत है , पर वास्तव में ऐसा नहीं है , कोई भी व्यक्ति इसके नियमों का पालन कर सकता है । जो लोग किसी अपरिहार्य कारणवश एकादशी के दिन उपवास नहीं रख पाते , उन्हें फलाहार करना चाहिए । वस्तुतः निर्जला एकादशी व्रत का मूल उद्देश्य व्यक्ति को धर्माचरण , इंद्रिय - निग्रह और धैर्य की प्रेरणा देना है । यह व्रत सही मायने में संयम का अभ्यास है।

व्रत की विधि 卐 :-

प्रातःकाल स्नान करके निर्जल - निराहार उपवास का संकल्प लें । विष्णु भगवान के चित्र या विग्रह को पूजा की चौकी पर आसान बिछा कर स्थापित करें । षोडश उपचार से भगवान की पूजा - अर्चना करने के बाद आरती करें । पूजन के बाद ब्राह्मण या जरूरतमंद लोगों को स्वच्छ शीतल जल और चीनी से भरे घड़े , फल , श्वेत वस्त्र , पंखा , छतरी आदि का यथाशक्ति दान करें । अगर गौर किया जाए तो दान में दी जाने वाली ये सभी वस्तुएं गर्मी के मौसम के लिए उपयोगी होती हैं । भीषण गर्मी में स्वयं भूखे प्यासे रहकर दूसरों का ख़याल रखना भी कठोर तपस्या ही है । निर्जल उपवास के साथ भगवान का ध्यान करते हुए उनका पूजन तथा रात्रि में उनके नाम का संकीर्तन इस व्रत को पूर्णता प्रदान करता है ।

यह भी जानें हवन करते समय स्वाहा क्यों कहा जाता है ? 

अग्नि देव की पत्नी का नाम स्वाहा है , ऐसी मान्यता है कि वे हवन सामग्री को अपनी पत्नी के माध्यम से ही ग्रहण करते हैं , इसीलिए हवन के दौरान प्रत्येक मंत्र के बाद स्वाहा शब्द का उच्चारण किया जाता है ।

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