विशोक-पष्ठी व्रत का विधान और महत्व ,व्रत को किस प्रकार करें , व्रत को करने से हर प्रकार से दुःखों का नाश हो जाता है और इंद्रलोक में निवास करेंगा,इस व्रत को करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है!

विशोक-पष्ठी व्रत का विधान और महत्व 

आरम्भिक बात

विशोक पष्ठी एक ऐसा व्रत है जिस से सारे दुखो का नाश हो जाता है,और कभी दुःख नहीं आता है! इस व्रत को शोक विनाशिनी के नाम  से भी जाना जाता है! आइये जानते है इस व्रत को किस प्रकार करे और इसका क्या महत्व है! इस व्रत को करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है! यह व्रत को माघ मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी को किया जाता है!

राजा  युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा की विशोक पष्ठी व्रत का कथन बताये,इस व्रत को किस प्रकार करना चाहिए और इसका महत्व क्या है!

राजा युधिष्ठिरने कहा - जनार्दन ! आपके श्रीमुख से पञ्चमी - व्रतों का विधान सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई । अब आप षष्ठीव्रतोंका विधान बतलायें । मैंने सुना है कि षष्ठी को भगवान् सूर्य को पूजा करने से सभी व्याधियाँ शान्त हो जाती है और सभी कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं । 
विशोक पष्ठी व्रत का विधान और महत्व 


व्रत को किस प्रकार करें , व्रत को करने से हर प्रकार से दुःखों का नाश हो जाता है और इंद्रलोक में निवास करेंगा  :-

भगवान् श्रीकृष्ण बोले - महाराज ! सर्वप्रथम मैं विशोक - षष्ठी - व्रत का विधान बतलाता हूँ । इस तिथि को उपवास करनेसे मनुष्यको कभी शोक नहीं होता । माघ मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी को प्रभातकालमें उठकर दन्तधावन करे , कृष्ण तिलों से स्नान आदिद्वारा पवित्र हो कृशर- ( खिचड़ी ) का भोजन करे , रात्रिमें ब्रह्मचर्यपूर्वक रहे । दूसरे दिन षष्ठीको प्रभातकालमें उठकर स्नान आदिसे पवित्र हो जाय । सुवर्णका एक कमल बनाये , उसे सूर्यनारायणका स्वरूप मानकर रक्तचन्दन , रक्तकरवीर - पुष्प और रक्तवर्णके दो वस्त्र , धूप , दीप , नैवेद्य आदिसे उनका पूजन करे ।
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विशोक पष्ठी व्रत

तदनन्तर हाथ जोड़कर इस मन्त्रसे प्रार्थना करे:-

"यथा विशोकं भवनं त्वयैवादित्य सर्वदा । 
तथा विशोकता मे स्यात् त्वद्धक्तिर्जन्यजन्यनि"।। 

हे आदित्यदेव । जैसे आपने अपना स्थान शोकसे रहित बनाया है , वैसे ही मेरा भी भवन सदा शोकरहित हो तथा जन्म - जन्ममें मेरी आपमें भक्ति बनी रहे ।

इस विधिसे पूजनकर षष्ठीको ब्राह्मण - भोजन कराये । गोमूत्रका प्राशन करे । फिर गुड़ , अत्र , उत्तम दो वस्त्र और सुवर्ण ब्राह्मणको प्रदान करे । सप्तमीको मौन होकर तेल और लवणरहित भोजन करे और पुराण भी श्रवण करे ।
इस प्रकार एक वर्षपर्यन्त दोनों पक्षोंकी षष्ठीका व्रतकर अन्त में शुक्ल सप्तमी को सुवर्ण - कमलयुक्त कलश , श्रेष्ठ सामग्रियोंसे युक्त उत्तम शय्या और पयस्विनी कपिला गौ ब्राह्मणको दान करे । इस विधि से कृपणता छोड़कर जो इस व्रतको करता है , वह करोड़ों वर्षोंसे भी अधिक समय तक शोक , रोग , दुर्गति आदि से मुक्त रहता है ।
यदि किसी कामना से यह व्रत किया जाय तो उसकी वह कामना अवश्य पूर्ण होती है और यदि निष्काम होकर व्रत करे तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है । जो इस शोक - विनाशिनी विशोक - षष्ठीका एक बार भी उपवास करता है , वह कभी दुःखी नहीं होता और इन्द्रलोकमें निवास करता है ।

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